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क्या है साइकिल और समाजवादी पार्टी की कहानी? पहले इन सिंबल पर चुनाव लड़ चुके हैं मुलायम सिंह यादव

समाजवादी पार्टी के चुनाव चिह्न साइकिल की सोशल मीडिया पर काफी चर्चा हो रही है. ऐसे में आज आपको बता रहे हैं कि समाजवादी पार्टी के इस चुनाव चिह्न का क्या इतिहास है.

हाल ही में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Prime Minister Narendra Modi) ने एक रैली में अपने भाषण में साइकिल का जिक्र किया था. पीएम मोदी ने साइकिल को लेकर समाजवादी पार्टी (Samajwadi Party) और आतंक का कनेक्शन बताया था. इसके बाद से समाजवादी पार्टी और साइकिल चुनाव चिह्न (Cycle Polling Symbol) की सोशल मीडिया पर चर्चा हो रही है. पीएम मोदी के भाषण को लेकर कई तरह की प्रतिक्रियाएं सामने आ रही हैं. जब सोशल मीडिया पर समाजवादी पार्टी के चुनाव चिह्न की बात हो रही है तो हम आपको बताते हैं कि आखिर समाजवादी पार्टी को साइकिल का चुनाव चिह्न कैसे मिला.

ऐसे में जानते हैं कि आखिर समाजवादी पार्टी में साइकिल चुनाव चिह्न का क्या इतिहास है. तो आज हम आप बताते हैं कि साइकिल की क्या कहानी है और किस तरह से पार्टी को साइकिल चुनाव चिह्न बनाया गया.

समाजवादी पार्टी का चुनाव चिन्ह

समाजवादी पार्टी के संरक्षक मुलायम सिंह यादव ने 4 अक्टूबर 1992 को सपा की स्थापना की और 1993 में यूपी विधानसभा चुनाव से पहले पार्टी को साइकिल चुनाव चिह्न मिला. इस चुनाव में समाजवादी पार्टी ने 256 सीटों पर चुनाव लड़ा और 109 पर जीत हासिल की. इसके बाद ​​मुलायम दूसरी बार मुख्यमंत्री बने, क्योंकि समाजवादी पार्टी बनने से पहले भी वो मुख्यमंत्री रह चुके थे. बता दें कि मुलायम इससे पहले 1989 से 1991 तक मुख्यमंत्री रहे थे, लेकिन तब वे जनता दल का हिस्सा थे, जिसका चुनाव चिन्ह पहिया था.

आप शायद ही ये जानते होंगे कि मुलायम इससे पहले अन्य पार्टियों के चुनाव चिह्न पर चुनाव लड़ चुके हैं. मुलायम सिंह यादव साइकिल से पहले बरगद का पेड़, ‘बैलों की जोड़ी’, ‘कंधे पर हल धरे किसान’ जैसे चिह्नों पर चुनाव लड़ चुके हैं.

साइकिल चुनाव चिह्न की कहानी?

इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के अनुसार समाजवादी पार्टी के यूपी अध्यक्ष नरेश उत्तम पटेल का कहना है, ‘जब 1993 के विधानसभा चुनावों के लिए चुनाव चिन्ह चुनने की बात आई, तो नेताजी (मुलायम) और अन्य वरिष्ठ नेताओं ने उपलब्ध विकल्पों में से साइकिल को चुना. उस दौर में साइकिल किसानों, गरीबों, मजदूरों और मध्यम वर्ग का वाहन था और साइकिल चलाना सस्ता और स्वास्थ्य के लिए भी अच्छा है.’ इस वजह से साइकिल को चुनाव चिह्न के रूप में चुना गया.

वहीं, सपा के संस्थापक सदस्य और उत्तराखंड प्रदेश अध्यक्ष सत्यनारायण सचान ने कहा कि तीन बार विधायक बनने के बाद भी मुलायम ने 1977 तक साइकिल की सवारी की. सचान ने बताया, ‘बाद में पार्टी के किसी अन्य नेता ने पैसा इकट्ठा किया और उनके लिए एक कार खरीदी.’ उनका कहना है साइकिल का चिह्न गरीबों, दलितों, किसानों और मजदूर वर्गों के लिए पार्टी के समर्पण और प्रतिबद्धता को दर्शाता है. जिस तरह से समाज और समाजवादी चलते रहते हैं, उसके दो पहिये खड़े होते हैं, जबकि इसका हैंडल संतुलन के लिए होता है.