कृषि

जलवायु परिवर्तन से अनार के बागों पर संकट, इसकी पैदावार के लिए फेमस संगोला में कम हो रहा क्षेत्र

 सोलापुर जिले का संगोला तालुका पूरे देश में अनार बेल्ट के रूप में मशहूर है. लेकिन अब यहां इसके बाग तेजी से घट रहे हैं. कभी 35,000 हेक्टेयर में थे बाग लेकिन अब इसमें काफी कमी आ गई है.

सोलापुर जिले (Solapur District) के संगोला तालुका को अनार के बाग (Pomegranate Orchards) का सबसे अच्छा विकल्प माना जाता हैं. इस तालुका में सबसे अच्छे और बड़े पैमाने पर अनार की खेती की जाती है. इसके कारण इस तालुका को पूरे देश में अनार (Pomegranate) तालुका के रूप में जाना जाता है, लेकिन अब कुछ समय से अनार के बागों को तेजी से काटा जा रहा है. जलवायु परिवर्तन के असर ने यहां अनार की खेती को प्रभावित करना शुरू कर दिया है. इस तालुका में अनार के बागों के अस्तित्व को प्रकृति की अनियमितताओं, बीमारियों और कीटों के कारण खतरा पैदा हो गया है. जिससे किसानों  (Farmers) की परेशानी बढ़ गई है. लुका में इसकी खेती में लगातार कमी देखने को मिल रही है.

संगोला कृषि कार्यालय के पास 24,000 हेक्टेयर में अनार के बागों का रिकॉर्ड है. कृषि अधिकारी मानते हैं कि इसके बाग कम हो रहे हैं लेकिन अभी इसे रिकॉर्ड में नहीं दर्ज किया गया है. पौधों पर कीटों और बीमारियों का प्रकोप बढ़ रहा है. तालुका के कृषि अधिकारी शिवाजी शिंदे ने कहा कि अनार के बाग में लगने वाली बीमारियों को कंट्रोल करने के लिए उचित मार्गदर्शन की कमी के कारण भी नुकसान हो रहा है. जिसकी वजह से सांगोला के किसान एक अलग विकल्प खोजने के लिए तैयार हैं.

क्यों बदले हालात?

अच्छा वातावरण और गुणवत्तापूर्ण उत्पादों के कारण सांगोला का अनार कम समय में ही विदेशो में भी भेजा जाने लगा था. इसके अलावा, कम वर्षा, गर्म जलवायु और अनार के लिए अच्छे वातावरण के कारण, अनार के बाग 35,000 हेक्टेयर में फल-फूल रहे थे.लेकिन धीरे धीरे अनार के बागानों को जलवायु परिवर्तन से सबसे ज्यादा नुकसान हुआ और यह कम होते चले गए. अनार के पौधों पर कीटों का अटैक हो रहा है. कई तरह के रोग लग रहे हैं. पूरा पेड़ मुरझा जा रहा है, इस बीमारी का कोई इलाज नहीं है. इसलिए किसान अनार के बाग की कटाई करने पर मजबूर होने लगे हैं. अब ऐसे में किसान नए बागवानी को छोड़ के दूसरे विकल्प तलाश रहे हैं.

अनुसंधान केंद्र की उदासीनता

अनार के उत्पादन और उसकी गुणवत्ता ने संगोला तालुका की एक अलग पहचान बनाई थी, पिछले 2 दशकों से किसानों की कड़ी मेहनत और लगन से यह क्षेत्र अनार बेल्ट के रूप में मशहूर हो गया. हालांकि, कीटों के प्रकोप और जलवायु परिवर्तन के बीच अगर अनार अनुसंधान केंद्र से किसानों को उचित मार्गदर्शन मिलता ताे स्थिति खराब नहीं होती. ऐसा किसान मानते हैं. पिछले तीन सालों से बगीचों के अंतर्गत आने वाले क्षेत्र में गिरावट आ रही है. किसान कह रहे हैं कि अगर अनार की खेती को बचाना है तो सरकार और वैज्ञानिकों को खास ध्यान देना होगा.