कृषि

किसानों के लिए ‘हरा सोना’ है बांस की खेती, 50 परसेंट मदद देगी सरकार

बांस की खेती पर फोकस करेगी मध्य प्रदेश सरकार, एक हेक्टेयर में लगाए जा सकते हैं 625 पौधे. किसानों का रिस्क फैक्टर कम करती है बांस की खेती.

मध्य प्रदेश सरकार ने बांस की खेती को बढ़ावा देने की कोशिश शुरू कर दी है. विशेषज्ञ इसे किसानों (Farmers) के लिए ‘हरा सोना’ बता रहे हैं. वन विभाग के प्रमुख सचिव अशोक वर्णवाल ने कहा कि बांस की खेती (Bamboo Farming) अन्य फसलों की तुलना में सुरक्षित और अधिक लाभदायक है. बांस की फसल की खासियत यह भी है कि यह किसी भी मौसम में खराब नहीं होती. उन्होंने यह बात हरदा में बांस रोपण के लिए कृषकों की एक दिवसीय कार्यशाला में कही. वर्णवाल ने बताया कि बांस की फसल इस दृष्टि से भी बेहतर है कि इसे एक बार लगाने के बाद कई साल तक इसका उत्पादन प्राप्त होता है. बांस की फसल में खर्चा कम होने के साथ मानव श्रम भी बहुत कम लगता है. इसकी खेती पर किसानों को प्रति पौधा 120 रुपये की मदद मिलेगी. तीन साल में औसतन 240 रुपये प्रति प्लांट की लागत आती है. यानी आधा पैसा सरकार देगी.

वर्णवाल ने बताया कि एक हेक्टेयर में बांस के 625 पौधे लगाए जा सकते हैं. किसान सरकारी नर्सरी से बांस के पौधे खरीद सकते हैं. उन्होंने कहा कि बांस की फसल पर्यावरण के लिए लाभकारी, हरियाली बढ़ाने के साथ तापमान संतुलित करने में भी सहायक है. सीएम शिवराज सिंह चौहान पहले ही कह चुके हैं कि कृषि के क्षेत्र में बांस मिशन को लागू कर खेती को लाभ का काम बनाया जाएगा. इसकी खेती फसल विविधीकरण (Crop Diversification) में भी अहम भूमिका निभाएगी. उन्होंने अधिकारियों से कहा है कि वे किसानों को बांस की खेती के लिए प्रेरित करें.

बांस मिशन के सीईओ ने क्या कहा?

मध्य प्रदेश (Madhya Pradesh) बांस मिशन के सीईओ डॉ. यूके सुबुद्धि ने बताया कि राज्य बांस मिशन योजना में किसानों द्वारा निजी भूमि पर बांस रोपण किया जाता है. रोपित बांस के पौधों के लिए 3 वर्ष में 120 रुपये प्रति पौधे की दर से किसानों को अनुदान दिया जाता है. प्रधान मुख्य वन संरक्षक एवं वन बल प्रमुख आरके गुप्ता एवं कलेक्टर सहित अन्य अधिकारी और किसान भी इस मौके पर मौजूद रहे.

रिस्क फैक्टर कम करती है बांस की खेती

कृषि विशेषज्ञ बिनोद आनंद का कहना है कि बांस की खेती किसानों का रिस्क कम करती है. क्योंकि किसान बांस के पौधों के बीच दूसरी फसलें भी उगा सकते हैं. इससे फायदा ज्यादा होता है. बांस की 136 प्रजातियां हैं, लेकिन 10-12 काफी प्रचलित हैं. किसान भाई अपनी सहूलियत के हिसाब से प्रजाति का चयन कर सकते हैं. आनंद का कहना है कि पहले बांस काटने पर किसान भाईयों पर फॉरेस्ट एक्ट लगता था. एफआईआर होती थी. किसानों की इस दिक्कत को देखते हुए सरकार ने इसे पेड़ की लिस्ट से हटवा कर घास की श्रेणी में करवा दिया है. इसलिए अब निजी जमीन पर लगाए गए बांस को काटने पर कोई केस नहीं होगा.